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‘थैंक यू फॉर कमिंग’ ने जनता को किया खुश और नाखुश? डायरेक्शन और कहानी दिखी कमज़ोर….

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आज का सिनेमा काफ़ी तरक्की कर चुका है हर घर हर गली मोहल्ले तक सिनेमा, टेलीविजन और फोन जैसी सुविधाएं होने लगी हैं जिससे आज आसानी से हर तरह की जानकारियों से आप रूबरू हो सकते हैं उसी तरह आज समाज में इंटिमेसी जैसी चीजों पर खुल कर बातें करने से अब न लोग और न ही सिनेमा कतरा रहा है हाल फिलहाल ओ एम जी 2 आई और उस फिल्म में देश के भविष्य को यानी की टीन एज बच्चे कैसे सेक्स संबंधी या उससे जुड़े और भी मुद्दों से अकेले लड़ते हैं क्योंकि मां बाप ने अपनी सीमाएं बनाई है इन सेक्स संबंधी जानकारियां न देने की और जो हमारे देश के टैबू बन चुके मुद्दे हैं इन्हें इस तरह की फिल्मों द्वारा दिखाया जा रहा है। थैंक यू फॉर कमिंग इस शुक्रवार को रिलीज हुई लेकिन फिल्म कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई और बड़े ही मिक्सड रिएक्शन देखने को मिले पांच साल पहले रिया कपूर ने एकता कपूर के साथ मिलकर फिल्म ‘वीरे दी वेडिंग’ का निर्माण किया था जिस फिल्म को और उसके गानों को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला और उस फिल्म का विषय भी महिलाओं की आधुनिक सोच के साथ दिखाया गया था वहीं इस बार भी अनिल कपूर की बेटी रिया कपूर और जीतेंद्र की बेटी एकता कपूर ने इसी तरह की फिल्म बनाई है, ’थैंक यू फॉर कमिंग’। थैंक यू फॉर कमिंग’ के जरिए लड़कियों के ऑर्गेज्म जैसे बोल्ड और जरूरी विषय पर फिल्म बनाने की बहादुरी इन दोनों ने ही दिखाई मगर इस कहानी को कहने के लिए जो तरीका अपनाया गया है, वह फिल्म को एकता की और भी ऐसी ही सतही सेक्स कॉमेडी फिल्म्स के करीब ले जाकर खड़ा कर देती है।
जानिए फिल्म की” कहानी”….
फिल्म में हाई क्लास लड़की कन‍िका कपूर की कहानी है, ज‍िसे एक गायनकॉलज‍िस्‍ट स‍िंगल मदर ने पाला है। स्कूल के दिनों में ही लोग उसे ठंडी और कांडू कनिका के नाम से बुलाते हैं।कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसे शुरू से लड़के ये कहते हैं कि उसे ठीक से सेक्स करना नहीं आता और उसे जिंदगी में कभी ऑर्गेज्म नहीं हुआ तो बस वो चरम सुख की प्राप्ति की तलाश में लग जाती है जब कनिका 30 की उम्र तक उसे वो खुशी देने वाला बॉयफ्रेंड नहीं ढूंढ पाती तब अर्जुन मल्होत्रा (करण कुंद्रा) उसकी लाइफ में क्रश बनके आता है। कनिका को अपने 30वें बर्थडे पर लगता है कि अब उसे पूरी जिंदगी कोई पार्टनर नहीं मिलेगा लेकिन अपने जन्मदिन की पार्टी के दौरान, वह अपनी सहेलियों-टीना (शिवानी बेदी) और पल्लवी (डोली सिंह) को बताती है कि उसे कभी भी ऑर्गेज्म यानी चरम सुख का अनुभव नहीं हुआ है लेकिन अपने ही रोक्के में उसे चरम सुख की प्राप्ति हो जाती है लेकिन उसे ये समझ नहीं आता की ये प्राप्ति उसे हुई किससे उसके होने वाले पति से या तीन एक्स-बॉयफ्रेंड रहे उनसे? उसे खुद नहीं पता होता। फिर वह सहेलियों संग उसका पता करने की कोशिश में लग जाती है ऐसे करके उसके सामने कई परतें खुलती है। बस कहानी भूमि पेडनेकर के ही आगे पीछे घूमती रहती है।
एक्टिंग
भूमि पेडनेकर एक बेहतरीन एक्ट्रेस हैं क्योंकि उन्होंने पहले काफी अच्छी फिल्म्स में अच्छा अभिनय किया है इस फिल्म में भूमि पेडनेकर लीड रोल में हैं उनका काम ठीक है लेकिन फिल्म की कहानी ही जब खास नहीं है तो वो क्या करतीं। डोली सिंह और शिबानी बेदी ने अच्छा परफॉर्म किया है। हालांकि कुशा कपिला, करण कुंद्रा को स्क्रीन स्पेस काफी कम मिला है जिसकी वजह से उनके अभिनय के बारे में ज्यादा जान नहीं पाए। शहनाज गिल वैसे बड़ी मासूम सी लगती हैं लेकिन फिल्म में उनका किरदार काफी हॉट दिखाया गया है वहीं वो भी अचानक फिल्म से गायब हो जाती है जो काफी अटपटा है। यहां एक्टर्स की तरफ से कोई कमी नहीं लगी लेकिन कहानी और डायरेक्शन लूज होने से एक्टिंग कुछ खास फिल्म को बचा नहीं पाई।


फिल्म से ज्यादा प्रमोशन में लगाया समय
एक समय था जब फिल्म का प्रमोशन तो दूर फिल्म का पोस्टर लगने पर पता चलता था की ये फिल्म आ रही है लेकिन सोशल मीडिया के आ जाने से और जो भी सोशल मीडिया से अपना नाम कमा रहे हैं अब फिल्मों में उन्हें लिया जा रहा है जिससे फिल्म का प्रमोशन हो तो ज्यादा से ज्यादा लोग उनके इवेंट्स से जुड़ पाए तभी तो भूमी को छोड़कर बाकी सभी की सोशल मीडिया में अलग पहचान है। वहीं अगर थोड़ा समय फिल्म को दे दिया होता तो शायद प्रमोशन की इतनी जरूरत न पड़ती। लेकिन जिस फिल्म में शहनाज को लिया है उसकी वजह कहीं न कहीं उनकी पॉपुलैरिटी है और आए दिन सभी एक्ट्रेस प्रमोशन के लिए इवेंट्स करती हुई नजर आ रही हैं तो इसे कहते हैं मार्केटिंग करना।
बारी डायरेक्शन की….
करन बुलानी ने फिल्म को डायरेक्ट किया है वो कहानी को या तो ठीक से समझ नहीं पाए या समझा नहीं पाए। मॉर्डन होने का मतलब, आजादी का मतलब यहां थोड़ा गलत तरह से पेश कर दिया गया है। यहां इमोशंस को दिखाया ही नहीं गया क्योंकि कोई लड़की किसी भी टाइम किसी के भी साथ सेक्स करने के लिए एक दम से तैयार नहीं होती समझना पड़ेगा कि वो कहना क्या चाहते हैं। फिल्म में लड़कियों को ही काफी ऑब्जेक्टीफाय किया है फिल्म में चमक धमक है अच्छे चेहरे हैं, अच्छे कपड़े हैं लेकिन इन सबसे अच्छी फिल्म नहीं बनती उसके लिए अच्छी कहानी और अच्छा डायरेक्शन चाहिए होता है

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